थाने में मगन दीवान जी हैं
और ठीक सामने उकड़ूँ बैठाई गई है वह औरत
कुछ इस तरह
जैसे बैठी हो शताब्दियों से
और बैठे रहना हो शताब्दियों तक
आखिर किसलिए आई होगी यहाँ पर यह
भले घर की औरतें तो आतीं नहीं थाने
जरूर इसका मर्द या लड़का बंद होगा भीतर
या फिर इसी का हुआ होगा चालान बदचलनी में
न हिलती है न डुलती है
न बोलती है कुछ
बस देखती है टुकुर–टुकुर सन्न सी
थाने के विरल आँगन को
जो स्वभावतः स्वस्थ और हरा-भरा है
आँगन में है आम का पेड़
जिस पर जैसे डर के मारे
निकल आए हैं नए नकोर बौर
इस अप्रैल में ही
औरत देखती है उनको
और थाने में मुसकाती है अचानक
यह जानते हुए भी कि थाने में मुसकाना
कितना भयानक हो सकता है
जैसे उसका बचपना जाग गया हो उसके भीतर
उकड़ूँ बैठे बैठे ही वह मार देती हैं छलाँग बचपन में
भूल जाती है कि
उसका मरद कि लड़का बंद है भीतर
या उसी का हुआ है चालान
इस अप्रैल के जानलेवा घाम में
थाने के आँगन में उकड़ूँ बैठी औरत मुसकाती है
मैं प्रार्थना करता हूँ मन में
कि दीवान को शताब्दियों तक न मिले फुर्सत
उसकी ओर देखने की।